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एकादशी व्रत पूजा विधि एवं नियम :
एकादशी व्रत कैसे शुरू हुआ और भगवती एकादशी कौन है, इसका वर्णन पद्मा पुराण में मिलता है | पौराणिक कथा के अनुसार लीला पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण ने एक बार धर्मराज युधिष्ठिर को समस्त दुःखों, त्रिविध तापों का नाश करने वाले, हजारों यज्ञों के अनुष्ठान के बराबर, चारों पुरुषार्थों को सहज ही देने वाले एकादशी व्रत करने का निर्देश दिया। एकादशी व्रत करने का हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्व बताया गया है। शास्त्रों में वर्णित है कि एकादशी व्रत करने वाले मनुष्य के समस्त पापों का नाश हो जाता है एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है | भगवन श्री हरी की कृपा से भक्त को इस व्रत के प्रभाव से अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है |
महर्षियों की प्रार्थना सुन सूतजी बोले- "हे परम तपस्वी महर्षियों! अपने पांचवें अश्वमेध यज्ञ के समय धर्मराज युद्धिष्ठिर ने भी भगवान श्रीकृष्ण से यही प्रश्न किया था।
इस पर भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से निकला वह सारा वृत्तांत मैं आप सभी को सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो-
एक वर्ष में बारह मास होते हैं और एक मास में दो एकादशी होती हैं, सो एक वर्ष में चौबीस (24) एकादशी हुईं।
जिस वर्ष में अधिक मास पड़ता है, उस वर्ष में दो एकादशी बढ़ जाती हैं।
इन दो एकादशियों को मिलाकर कुल छब्बीस (26) एकादशी होती हैं-
एकादशी व्रत करने की इच्छा रखने वाले मनुष्य को दशमी के दिन से ही कुछ अनिवार्य नियमों का पालन करना चाहिए।
एकादशी व्रत के विशेष नियम :
दशमी तिथि से ही अपने आचरण को सात्विक एवं पवित्र रखें
दशमी तिथि को ही सिर धो कर स्नान करें, दशमी के दिन मांस, लहसुन, प्याज, मसूर की दाल आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
दशमी तिथि से ही ब्रह्मचर्य का पालन करें एवं भोग-विलास से दूर रहें
दशमी तिथि को शाम को हो भोजन कर लें रात्रि में भोजन ना करें जिससे की एकादशी के दिन पेट में अन्न ना रहे
दशमी तिथि को रात्रि में सोने से पहले ब्रश या दातुन कर लें एवं भगवान श्री हरी का ध्यान करते हुए सोये
इस दिन दातुन से या उंगली से ही दाँत और कंठ साफ कर लें 12 बार कुल्ला करें फिर नित्य कर्म से निवृत हो कर स्नान करें एवं साफ़ वस्त्र धारण करें |
नहाने के जल में थोड़े से काला तिल एवं गंगाजल मिला कर स्नान करे इससे शरीर एवं मन दोनों की शुद्धि होती है |
इसके पश्चात भगवन विष्णु एवं माँ लक्ष्मी की विधिवत पूजा करें, एकादशी व्रत करने का संकल्प लें |
तत्पश्चात 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' इस द्वादश मंत्र का जाप करें। राम, कृष्ण, नारायण आदि विष्णु के सहस्रनाम को कंठ का भूषण बनाएं।
भगवान विष्णु का स्मरण कर प्रार्थना करें और कहे कि- हे त्रिलोकीनाथ! मेरी लाज आपके हाथ है, अत: मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करना।
इस दिन चोर, पाखंडी, दुराचारी मनुष्यो से रहें, किसी का दिल दुखने वाली बात का करें, किसी पर क्रोध ना करें यदि भूलवश किसी निंदक से बात कर भी ली तो भगवान सूर्यनारायण के दर्शन कर धूप-दीप से श्रीहरि की पूजा कर क्षमा मांग लेना चाहिए।
सारे दिन श्री हरि का नाम लेते रहे, ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र मन ही मन रटते रहे, शाम को पुनः भगवन को भोग एवं आरती अर्पित करें, संभव हो तो रात्रि जागरण अवश्य करें | एकादशी व्रत में रात्रि जागरण का अत्यधिक महत्व बताया गया है |
इस दिन यथाशक्ति दान करना चाहिए। किंतु स्वयं किसी का दिया हुआ अन्न आदि कदापि ग्रहण न करें। दशमी के साथ मिली हुई एकादशी वृद्ध मानी जाती है।
वैष्णवों को योग्य द्वादशी मिली हुई एकादशी का व्रत करना चाहिए। त्रयोदशी आने से पूर्व व्रत का पारण करें।
एकादशी (ग्यारस) के दिन व्रतधारी व्यक्ति को गाजर, शलजम, गोभी, पालक, इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए।
केला, आम, अंगूर, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करें।
प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करना चाहिए।
द्वादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन कर ब्राह्मणों को यथा शक्ति दान करने के बाद ही व्रत का पारण करना चाहिए |
इस प्रकार जो भी मनुष्य पूरी भक्ति भावना से विधि पूर्वक एकादशी का व्रत करतें है उनके समस्त पापों का नाश होता है उनपर श्री हरी की कृपा सदैव बनी रहती है और उसके जीवन के सारे कष्ट समाप्त हो जाते है |
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